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आखिरी दिन

वी. कल्याणम्

30 जनवरी 1948 … बापू के जीवन का आखिरी दिन! इस दिन के कई विवरण हमें मिलते हैं जिनमें से एक विवरण यह है, जो गांधीजी के निजी सचिवों में से एक वी. कल्याणम ने लिखा है | यह मौत की नहीं, आखिरी दिन की डायरी सरीखी है.

नौ सितेंबर 1947 ! महात्मा गांधी कलकत्ता से दिल्ली पहुंचे थे | उनके रहने की व्यवस्था बिड़ला भवन में थी | एक बड़ा-सा कमरा था, जिसमें कालीन बिछा था | इससे सटा एक और कमरा था, जिसमें नहाने और नित्य-क्रिया से निवृत्त होने की व्यवस्था थी | इस विशाल इमारत के भूतल पर यह कमरा ऐसा था कि एक कोने पर एक मोटा सूती गद्दा रखा था | कमर टिकाने के लिए एक तकिया भी | साथ में एक मेज भी थी | दूसरे कोने पर लिखने-पढ़ने के लिए एक कुर्सी-मेज रखी थी | गांधीजी का दिन यहां अमूमन चिटि्ठयां लिखते, लोगों से बातचीत करते, चरखा कातते और दोपहर एक झपकी लेते गुजरता था | कमरे से लगी एक बालकनी भी थी, जो शीशे से पूरी तरह बंद थी | रात को गांधीजी बाकी सब लोगों के साथ जमीन पर सोते थे |

शुक्रवार 30 जनवरी 1948 की सुबह आम दिनों की तरह थी | हमेशा की तरह साढ़े तीन बजे अपनी प्रार्थना के लिए सब उठे | उसके बाद रोज की गतिविधियां शुरु हो गई | गांधीजी ने अपनी पोती आभा को जगाया | उसके बाद उन्होंने स्नान किया और फिर गद्दे पर बैठ गए | उनका दिन हमेशा प्रार्थना के साथ शुरु होता था | उनकी प्रार्थनाओं में सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों की बातें शामिल होती थीं | यह उनका इस बात पर जोर देने का तरीका था कि मूल में सभी धर्म एक हैं |

गांधीजी ने ध्यान से अपनी आखें बंद कर लीं | आभा अभी भी सोयी हुई थी | गांधीजी ने उसकी अनुपस्थिति महसूस कर ली थी | प्रार्थना आभा के बिना ही हुई | प्रार्थना के तुरंत बाद मनु रसोई में चली गई | रोज की तरह उसने गांधीजी का प्रिय पेय एक चम्मच शहद और नींबू के रस वाला गरम पानी तैयार किया | जब उसने गिलास गांधीजी को पकड़ाया तो उन्होंने कहा, “लगता है मेरा असर अपने साथ के लोगों पर भी कम होता जा रहा है | प्रार्थना झाड़ू की तरह है, जिसका मकसद है हमारी आत्मा की शुद्धि | प्रार्थना में आभा के न आने से मुझे तकलीफ होती है | तुम्हें तो पता ही है कि मैं प्रार्थना को कितना महत्वपूर्ण मानता हूं | अगर तुममें साहस हो तो तुम मेरी तरफ से मेरी अप्रसन्नता उस तक पहुंचा सकती हो | अगर वह प्रार्थना में आने की इच्छुक नहीं है तो उसे मेरा साथ छोड़ देना चाहिए | इसमें हम दोनों की भलाई होगी !”

इस दौरान आभा जग चुकी थी | उसने अपना काम शुरु कर दिया था | गांधीजी उससे सीधे मुखातिब नहीं हो रहे थे | मैं दिन भर के निर्देश लेने के लिए उनके पास बैठा | उन्होंने कहा कि 2 फरवरी से उनका जो दस दिन का सेवाग्राम का दौरा शुरु हो रहा है, मैं उसकी व्यवस्था करूं | मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नये संविधान का टाइप किया हुआ वह ड्राफ्ट रखा, जो उन्होंने एक दिन पहले बोल कर मुझसे लिखवाया था और जिसमें कोंग्रेस को भंग करने और एक नये संगठन के निर्माण का सुझाव दिया था | उनका इसे देखने का मन नहीं था | उन्होंने मेरे वरिष्ठ प्यारेलालजी को बुलाया और ड्राफ्ट इस निर्देश के साथ उन्हें दे दिया कि वे इसे सावधानी से देखें और अगर कोई सुझाव या सुधार जरूरी लगे तो बताएं |

उन दिनों दिल्ली में पाकिस्तान से आ रही हिंदू शरणार्थियों की विशाल आबादी के चलते सांप्रदायिक तनाव बना हुआ था | पाकिस्तान में मुसलमानों के हाथों बुरा अनुभव झेल चुके ये लोग दिल्ली में रह रहे मुसलमानों से बदला लेना चाहते थे | मुस्लिम और हिंदू नेताओं के जत्थे रोज उनसे मिलते और राजधानी में सामान्य हालात कैसे बहाल हों, इस पर चर्चा करते |

सर्दियों का मौसम था | गांधीजी खुले लॉन में चारपाई पर बैठकर धूप सेंकते दिन बिताते | मिलने वालों का तांता लगा रहता | वे कभी खाली नहीं दिखते थे | जब कोई मुलाकात न होती तो वे चिटि्ठयां और गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी भाषाओं में लेख लिखने में व्यस्त रहते | मंत्री और दूसरे वीआइपी उनसे वक्त लेकर मुलाकात करते, जबकि पंडित नेहरु जब दिल्ली होते तो अपने दफ्तर जाते हुए करीब नौ बजे उनसे मिलते |

करीब दो बजे ‘लाइफ’ मैगजिन की मशहूर फोटोग्राफर मारग्रेट बर्क ने गांधीजी का साक्षात्कार  लिया | उन्होंने पूछा, “आप हमेशा कहते रहे हैं कि मैं 125 साल तक जीना चाहूंगा | यह उम्मीद आपको कैसे है ?” गांधीजी का जवाब उन्हें हैरान करने वाला था | उन्होंने कहा, “अब उनकी ऐसी कोई इच्छा नहीं है |” मारग्रेट ने वजह पूछी तो उनका कहना था, “क्योंकि दुनिया में इतनी भयानक चीजें हो रही हैं कि मैं अंधेरे में नहीं रहना चाहता |”

मारग्रेट के जाने के बाद पाकिस्तान में हमारे डिप्टी हाइ-कमिश्नर प्रोफेसर एन.आर. मलकानी दो व्यक्तियों के साथ आए | मलकानी ने गांधीजी को सिंध के हिंदुओं की दुर्दशा बताई | उनकी बात धैर्य के साथ सुनने के बाद गांधीजी ने कहा, “अगर लोगों ने मेरी सुनी होती तो ये सब नहीं होता | मेरा कहा लोग मानते नहीं फिर भी जो मुझे सच लगता है मैं कहता रहता हूं | मुझे पता है कि लोग मुझे पुराने जमाने का आदमी समझने लगे हैं |”

20 जनवरी की प्रार्थना सभा में एक बम धमाका हुआ था | यह बम मदनलाल नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने फेंका था लेकिन वह गांधीजी को नहीं लगा | एक दीवार जरूर टूट गई थी | लेकिन गांधीजी को नहीं लगा कि कोई उन्हें मारने आया था | बिड़ला भवन में पुलिस बढ़ा दी गई थी | निर्देश थे कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को अंदर न जाने दिया जाए जो संदिग्ध लग रहा हो | पुलिस को लग रहा था कि सुरक्षा को और भी प्रभावी बनाने के लिए उन्हें प्रार्थना सभा में शामिल होने या फिर किसी दूसरे मकसद से भीतर आने वाले हर व्यक्ति की तलाशी लेने की इजाजत दी जानी चाहिए | जब एक पुलिस सुपरिटेडेंट यह प्रस्ताव लेकर मेरे पास आए तो मैंने गांधीजी से सलाह मांगी | वे तलाशी के लिए राजी नहीं थे | मैंने यह संदेश सुपरिटेडेंट तक पहुंचा दिया | कुछ ही मिनटों के भीतर डीआइजी पहुंच गए और उन्होंने कहा कि वे गांधीजी से बात करना चाहते हैं | मैं उन्हें भीतर ले गया | डीआइजी का कहना था कि उनकी जान को खतरा है और जिन सुविधाओं की मांग की गई है वे दी जानी चाहिए, नहीं तो पुलिस की फजीहत होगी |

गांधीजी कुछ सुनने को तैयार नहीं थे | उन्होंने डीआइजी को बताया कि उनका जीवन ईश्वर के हाथ में है | अगर उनकी मृत्यु लिखी है तो कोई भी सुरक्षा उन्हें नहीं बचा सकती | उनका कहना था, “जो आजादी के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं उन्हें जीने का हक नहीं है |” लोगों की तलाशी के लिए सहमत होने के बजाय वे प्रार्थना सभा रोक देंगे |

सरकार बने अभी सिर्फ पांच महीने ही हुए थे, लेकिन मीडिया में पंडित नेहरु और सरदार पटेल के मतभेदों की खबरें छप रही थीं | गांधीजी इससे परेशान था | वे यहां तक सोच रहे थे कि सरदार पटेल को इस्तीफा देने के लिए कह दें | उन्हें लगता था कि शायद इससे देश चलाने के लिए नेहरु को पूरी तरह से खुला हाथ मिल जाएगा | उन्होंने चार बजे पटेल को चर्चा के लिए बुलाया था | वे चाहते थे कि प्रार्थना के बाद वे इस मुद्दे पर बात करें | अपनी बेटी मणिबेन के साथ पटेल जब पहुंचे तो गांधीजी खाना खा रहे थे | वे बातचीत कर ही रहे थे कि आभा और मनु भी वहां पहुंच गईं |


अंतिम प्रार्थना

प्रार्थना का समय पांच बजे था लेकिन बातचीत पांच बजे के बाद भी जारी रही | बातों की अहमियत और गंभीरता को देखते हुए हममें से किसी की भी बीच में बोलने की हिम्मत नहीं हुई | लड़कियों ने सरदार पटेल की बेटी मणिबेन को इशारा किया | पांच बजकर दस मिनट पर बातचीत खत्म हो गई | इसके बाद गांधीजी शौचालय गए और फिर फौरन ही प्रार्थना वाली जगह की तरफ बढ़ चले, जो करीब 30-40 गज की दूरी पर रही होगी | कमरे से बाहर चार या पांच सीढ़ियां थीं और फिर लॉन शुरु हो जाता था |

गांधीजी को प्रार्थनासभा में पहुंचने में 15 मिनट की देर हो गई थी | करीब 250 लोग बेचैनी से उनका इंतजार कर रहे थे | थोड़ी-सी दूरी से मैं देख सकता था कि भीड़ की नजर गांधीजी के कमरे की तरफ लगी हुई है | जैसे ही वे निकले, मैंने लोगों को कहते सुना, ‘गांधीजी आ गए !’ सभी की गरदन उसी दिशा में घूम गई जहां से गांधीजी आ रहे थे | हमेशा की तरह चुस्त चाल के साथ वे सिर झुकाए चल रहे थे | उनकी नजर जमीन पर जमी हुई थी | उनके हाथ अपनी दोनों पोतियों के कंधे पर थे | करीब ही बाईं तरफ से मैं उनके पीछे-पीछे चल रहा था |

मैंने उन्हें लड़कियों को डांट लगाते सुना | वे इसलिए नाराज थे कि प्रार्थना के लिए देर हो रही है, यह उन्हें क्यों नहीं बताया गया | उनका कहना था, “मुझे देर हो गई है | मुझे यह अच्छा नहीं लगता |” मनु ने कहा कि इतनी गंभीर बातचीत को देखते हुए वह इसमें बाधा नहीं डालनी चाहती थी, तो गांधीजी ने जवाब दिया, “नर्स का कर्तव्य है कि वह मरीज को सही वक्त पर दवाई दे | अगर देर होती है तो मरीज की जान जा सकती है |”

हम उन सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, जो प्रार्थना के लिए बने मंच तक जा रही थीं | लोग हाथ जोड़कर गांधीजी का अभिवादन कर रहे थे | सीढ़ियों से 25 फुट दूर एक फुट ऊंचा लकड़ी का वह आसन था जिस पर वे बैठते थे | लोग उनके लिए जगह बनाते हुए एक तरफ हो रहे थे | अपनी जेब में रिवाल्वर रखे हत्यारा (नथुराम गोडसे) इस भीड़ में ही मौके का इंतजार कर रहा था | गांधीजी मुश्किल से पांच या छह कदम ही आगे बढ़े होंगे कि उसने बहुत करीब से एक-के-बाद-एक तीन गोलियां दाग दीं | वे पीछे गिर पड़े | गोली के घाव से काफी मात्रा में खून बह रहा था | भगदड़ में उनका चश्मा और खड़ाऊं न जाने कहां छिटक गए थे | मैं अपनी जगह पर जड़ रह गया | बाद में अकेले में यह दृश्य याद करके मेरी आखों से आंसू बह निकले थे |

खबर तेजी से फैली | कुछ ही मिनटों में बिड़ला भवन के बाहर भीड़ इकट्ठा होनी शुरु हो गई | लोगों को अंदर घुसने से रोकने के लिए गेट बंद करना पड़ा | पटेल तब तक जा चुके थे | मैं अपने कमरे की तरफ भागा | फोन से नेहरु के दफ्तर तक यह खबर भिजवाई | उन दिनों हम मंत्रियों के घरों में बेधड़क जा सकते थे | मैं किसी तरह से भीड़ के बीच से निकलते हुए कार में बैठा और इस घटना की खबर देने के लिए मुश्किल से पांच मिनट की दूरी पर स्थित पटेल के घर की तरफ चला |

इस दौरान गांधीजी की पार्थिव देह उठाकर उनके कमरे तक लाई जा चुकी थी | वे चटाई पर पड़े थे और लोग उनके इर्दगिर्द बैठे थे | ऐसा लगता था जैसे वे सोए हों | उनका शरीर कुछ समय तक गर्म ही था | रात आंसुओं में बीती – सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों की नहीं बल्कि दुनिया भर में उन करोड़ों लोगों की भी, जिनके लिए गांधीजी जिए और मरे |

उनकी देह जब उठाकर कमरे तक लाई गई तो उसके बाद वहां हंगामा मच गया | लोग यादगार के लिए उस जगह की मिट्टी उठाने लगे जहां गोली लगने के बाद वे गिरे थे | एक-एक मुट्ठी करते-करते कुछ ही घंटों के भीतर वहां पर एक बड़ा गड्ढा बन गया | इसके बाद उस जगह की घेरेबंदी कर वहां पर एक गार्ड तैनात कर दिया गया | सरकार द्वारा महात्मा गांधी की सुरक्षा के लिए बरती गई सावधानियों के संबंध में गृह मंत्री सरदार पटेल का कहना था, “मैंने खुद बापू से प्रार्थना की थी कि वे पुलिस को अपना काम करने की इजाजत दें | लेकिन मैं असफल रहा |” पटेल का यह भी कहना था कि हत्यारा सुरक्षा व्यवस्था की इस कमजोरी का फायदा उठाने में सफल रहा | उनके शब्द थे, “गांधीजी की यह भविष्यवाणी कि अगर उनकी मौत लिखी है तो कोई भी सावधानी उन्हें बचा नहीं सकती, सच साबित हुई |”

अपने अंतिम दिनों में गांधीजी प्रार्थना के बाद दिए जाने वाले भाषण में लगातार यह इच्छा जताते थे कि भगवान उन्हें अपने पास बुला लें | वे देश में चल रही भयावह बर्बरता के मूक साक्षी बने रहना नहीं चाहते थे | मुझे लगता है कि उस हत्यारे के माध्यम से भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली थी |

सौजन्य : गांधी मार्ग, सितंबर-अक्तूबर २०१८